गुरू जी ने बताया, अगस्त 1986 की एक रात जब दास पूजा कक्ष में ध्यानावस्थित बैठा था । तब दास को दिव्य आभास हुआ कि इस दिव्य शिला पर भगवान मारुति बैठे हैं और दास से कह रहे हैं कि मैं यहां प्राचीन काल से विराजमान हूं तुम इस शिला पर मेरा मन्दिर बनवाओ इस शिला से 25 कदम पूर्व की ओर एक अन्य शिला है जिसमें मेरे अभिन्न संगी श्री प्रेतराज जी की शक्ति विराज रही है मन्दिर निर्माण करते समय मेरी शिला का जब फालतु भाग काटोगे तो उसके नीचे भैरव सरकार जी की शिला स्वतः प्राप्त हो जायेगी।

दूसरे दिन दास अपने प्रिय साथी राजेन्द्र कुमार को साथ लेकर भैरों की सैर गांव में श्री पंडित सीता राम जी के निवास स्थान पहंुचा जो कि दास परिवार के पुरोहित भी हैं तथा उनसे इस दिव्य आभास का जिकर किया वह फौरन ही सहयोग के लिए तैयार हो गये । ढूँढते-2 हम तीनों ने इस पवित्रा शिला को ढूँढ लिया-दास को यह देख कर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि शिला पर वे सभी दिव्य चिन्ह विराजमान थे उनसे कुछ हटकर प्रभु श्री राम की भव्य छवि थी । शिला के ठीक बीच में श्री बाला जी के चरणों से कुछ हटकर एक छोटा सा पेड़ था और ऊपर के भाग पर मुकुट की तरह कांटेदार थोहर का पौध था, हमने शिला को प्रणाम किया और लौट आए।

पर्वत शिखा पर जहां कांटेदार वृक्षों व घास के सिवा कुछ न था मन्दिर निर्माण कार्य सहज न था फिर भी श्री बाला जी की कृपा से कार्य पूर्ण हुआ । यह दिव्य श्री त्रिमूर्तिधाम सदा ही सबका संकट निवारण करता रहेगा तथा सभी को आध्यात्मिक शान्ति प्रदान करेगा और श्रद्धालु भक्तों के मनोरथ पूर्ण करता रहेगा।

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