सुनो जी भैरव वीर, हे रणधीर, यह विनती करूँ। भिक्षा मुझे यह चाहिए, मैं द्वार नित आया करूँ ।
अरजी मेरी सरकार, करूणागार, तुम सुन लीजिए। न भक्ति है, न ज्ञान है, बस मदद थोड़ी कीजिये महिमा तुम्हारी बहुत है कैसे मैं वर्णन करूँ। सुनो जी भैरव वीर, हे रणधीर, यह विनती करूँ। भिक्षा मुझे यह चाहिए, मैं द्वार नित आया करूँ
शोभा बढ़ाए धाम की, सब ओर जय जय कार है। भूत प्रेत व जिन्नादि सब पे तेरा राज है। हथियार हैं जो आपके, उनका क्या वर्णन करूँ । सुनो जी भैरव वीर, हे रणधीर, यह विनती करूँ । भिक्षा मुझे यह चाहिए, मैं द्वार नित आया करूँ
एक हाथ में खड़ग, दूजे, पारा धारे हो सदा । तीजे कमण्डुल हैं उठाया, चौथे वर मुद्रा सदा । तुम गुणों से दूर हो तारीफ फिर मैं क्या करूँ 1 सुनो जी भैरव वीर, हे रणधीर, यह विनती करूँ । भिक्षा मुझे यह चाहिए, मैं द्वार नित आया करूँ।
बहुत है महिमा तुम्हारी भैरों सेर अब धाम है। आते दुखी पीड़ित जहाँ जग में ऊँचा नाम है। श्री भैरव सरकार के में शीश चरणों में धरूँ । सुनो जी भैरव वीर, हे रणधीर, यह विनती करूँ भिक्षा मुझे यह चाहिए, मैं द्वार नित आया करूँ।
नित नये तुम खेल खेलो माता जी खुश होती रहें। सिर पर मेरे अब हाथ रख दो मन बहुत व्याकुल रहे। हाथ जोड़ कर विनती करूँ और शीश चरणों में धरूँ। सुनो जी भैरव वीर, हे रणधीर, यह विनती करूँ । भिक्षा मुझे यह चाहिए, मैं द्वार नित आया करूँ ।