भृगु स्तोत्र अर्थ सहित

महर्षि भृगु ब्रह्मा जी के मानसपुत्र दैत्य गुरु शुक्राचार्य के यशस्वी पिता त्रिकालदर्शी लोक सन्तापहारी “महर्षीणां भृगुरहम” इस गीता वचन के अनुसार भगवान की दिव्य विभूति हैं, यह स्तोत्र भक्तों के प्रति उनकी कृपा प्राप्ति में परम सहायक सिद्ध होगा ।

(१) आदि देव ! नमस्तुभ्यं प्रसीदमे श्रेयस्कर || पुरुषाय नमस्तुभ्यं शुभ्रकेशाय ते नमः ||१||

अर्थ :- ब्रह्मा जी के मानस पुत्र मरिच्यादि नौ ब्रह्म सृष्टि के आदि देव हैं, उन्हीं में भृगु जी भी एक हैं, अतः हे आदि देव भृगु जी ! में आपका भक्त आपको नमस्कार करता हूं। हे सभी का कल्याण करने वाले भृगुदेव ! मेरे कल्याण के लिए मुझे आपकी प्रसन्नता प्राप्त हो । आप सभी के अन्तर्यामी परम पुरुष हो, अतः आपको मेरा नमस्कार है । हे शुभ्रकेश (श्वेतकेश धारी) आपको मेरा फिर नमस्कार है ।

(२) तत्त्व रथमारूढं ब्रह्म पुत्रं तपोनिधिम् । दीर्घकूर्चं विशालाक्षं तं भृगुं प्रणमाम्यहम् ||२||

अर्थ :- आत्म तत्त्व रूपी रथ पर विराजमान ! ब्रह्मा के मानसपुत्र ! तपस्या

के परिपूर्ण मानस भण्डार लम्बी दाढ़ी सुशोभित ! कमल के समान विशाल

नेत्रों वाले हे भृगु जी मैं आपको सादर प्रणाम करता हूं ||२||

(३) योगिध्येयं योगारूढं सर्वलोकपितामहम् । त्रितापपाप हन्तारं तं भृगुं प्रणमाम्यहम् ।।३।।

अर्थ : योगियों द्वारा ध्यान करने योग्य ! योग में आरूढ यानी परिपूर्णयोगी, समस्त लोकों के पितामह (परम पूजनीय) आध्यात्मिक आधिदैविक दुःखों के तथा समस्त पापों के नाश करने वाले उन परम प्रसिद्ध महर्षि भृगु को मैं सादर प्रणाम करता हूं ||३|| जी

(४) सर्वगुणं महाधीरं ब्रह्मविष्णु महेश्वरम् । सर्वलोक भयहरं तं भृगुं प्रणमाम्यहम् । अर्थ सर्वगुणसम्पन्न महा धैर्यशाली, ब्रह्मा विष्णु महेश्वरस्वरूप अर्थात

इनके तुल्य ऐश्वर्य वाले समस्त प्राणियों के भय को दूर करने वाले उन भृगु को में सादर प्रणाम करता हूं ||४||

(५) तेजः पुञ्ज महाकारं गाम्भीर्ये च महोदधिम् । नारायणं

च लोकेशं तं भृगुं प्रणमाम्यहम् ||५|| अर्थ :- तेज का समूह, बड़े से बड़ा आकार बनाने में समर्थ, गम्भीरता के सागर, नारायण के हृदय में श्री वत्स चिह्न के रूप में निवास करने के कारण

नारायण स्वरूप लोकों के ईश्वर उन भृगु जी को मेरा प्रणाम है ||

(६) रूद्राक्षमालयोपेतं श्वेतवस्त्र विभूषितम् । वर मुद्रा धर शान्तं तं भृगुं प्रणमाम्यहम् ।।

अर्थ :- रूद्राक्ष की माला से सुशोभित, श्वेत वस्त्रों से विभूषित तथा वरमुद्रा

धारण किये हुए परम शान्त उन भृगु जी को में सादर प्रणाम करता हूं

(७) सृष्टि संहार कर्त्तारं जगतां पालने रतम् । महा भय हरं देवं तं भृगुं प्रणमाम्यहम् ।।

अर्थ :- सृष्टि तथा उसका संहार करने में समर्थ, संसार के पालन पोषण में तत्पर, बड़े से बड़े पापों के नाश करने में समर्थ उन भृगु देव को मैं सादर प्रणाम करता हूं ॥

(८) बीजं च सर्व विद्यानां ज्ञानागम्याज्ञ ज्ञानद

भक्तानांभयहर्तारम् तं भृगुं प्रणमाम्यहम् ।।

अर्थ :- समस्त विद्याओं के बीज यानी मूलकारण ज्ञान से अगम्य यानी अच्छे जानकारों के ज्ञान की पकड़ में भी न आने वाले, और अज्ञानियों को ज्ञान का प्रकाश करने वाले अपने भक्तों के भय का विनाश करने वाले उन भृगु जी को में सादर प्रणाम करता हूं |

(९) भक्तेभ्यो भक्तिदात्तारं ज्ञान मोक्ष प्रदायकम् प्राणेश्वरं महानन्दं तं भृगुं प्रणमाम्यहम् ।।

अर्थ -अपने भक्तों के लिए भगवान की भक्ति का दान करने वाले तथा

उन्हें ज्ञान और मुक्ति को भी देने वाले प्राणशक्ति प्रदान करने के कारण प्राणों के स्वामी महान् ब्रह्मानन्द में मग्न उन भृगु जी को मैं सादर प्रणाम करता हूं ॥

(१०) अशेष दोषनाशनं तत्वज्ञानप्रकाशकम् । ज्योतिष्प्रद

स्वरूपस्थं तं भृगु प्रणमाम्यहम् ।।

अर्थ: अपने सेवकों के समस्त दोषों का नाश करने वाले, आत्म तत्व के ज्ञान का प्रकाश करने वाले, ज्योतिष शास्त्र या ज्ञान ज्योति को देने वाले अपने आत्म स्वरूप में स्थित उन भृगु जी को मैं सादर प्रणाम करता हूं ।

(११) हरि प्रियामद हरं भक्त मानस शोधनम् । रूद्रभ्रातरं

शुभदं तं भृगुं प्रण हम् ॥

अर्थ :- नारायण की पत्नी लक्ष्मी के मद का हरण करने वाले अपने भक्तों के मन की शुद्धि करने वाले भगवान रूद्र के भ्राता सभी कल्याणों के दाता उन भृगु जी को में सादर प्रणाम करता हूं |

(१२) सर्व मानस भावज्ञं कल्याणपथ दर्शकम् ॥ सर्वकर्म

विपाकज्ञ तं भृगुं प्रणमाम्यहम् ।।

अर्थ :- सब के मनोभावों को जानने वाले कल्याण प्राप्त करने के मार्ग को

दिखाने वाले सभी प्रकार के तथा सभी प्राणियों के कर्मों के फल दिपाक के रहस्य को जानने वाले उन भृगु जी को मैं सादर प्रणाम करता हूं ।

(१३) भृगुस्तोत्रं पठेन्नित्यं भक्तिमान् धीरमानसः । शुभं सर्वमवाप्नोति कीर्तिमाप्तो न संशयः ॥

अर्थ :- मन में धैर्य या स्थिरता धारण करके भक्ति भाव से इस भृगु स्तोत्र का नित्य पाठ करना चाहिये । जो इस प्रकार करता है वह संसार में कीर्ति को प्राप्त होकर सभी प्रकार के शुभ फलों को प्राप्त करता है इस में कोई संदेह नहीं है |

इति श्री भृगुस्तोत्रं हिन्दीव्यारख्या सहितं सम्पूर्णम् ।।

|| ॐ श्री विष्णु रुपाय श्री महर्षि भृगवे नमो नमः ||