श्री बाला जी हनुमान जी के महामन्त्री जिनका विग्रह दिव्य है। श्री हनुमान जी ने जब लंका दहन की उस समय ऋषि नीलासुर ने जो दसकन्धर रावण की सेवा में थे अपनी मायावी विद्या से उसे रोकने की बहुत चेष्टा की, किन्तु अग्नि शान्त होने की अपेक्षा अधिक प्रज्जवलित होती गई। क्योंकि:-
उस समय ‘हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास’ (राम चरित्त मानस सुन्दर काण्ड दोहा 25)
अतएव श्री हनुमान जी की यह अदभुत लीला देखकर ऋषि नीलासुर जान गए कि श्री हनुमान जी कोई दिव्य देहधारी हैं और उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए और उनसे पूछा कि आप कृपया अपना परिचय मुझे दीजिए। कहीं आप साक्षात् श्री विष्णु, ब्रह्मा व शिव में से कोई एक तो नहीं?
श्री हनुमान जी ने स्मित मुस्कान लिए उनकी ओर देखा और कहा- ऋषिवर, मैं न तो हरि हूँ न ब्रह्मा। मैं तो श्री राम जी का सेवक हूँ जो स्वयं नारायणावतार हैं उन्हीं की कृपा मुझ पर है जो मेरी लूम में प्रज्जवलित अग्नि भी मुझे कोई दाह प्रदान नहीं कर रही है और आपकी मायावी शक्ति भी उस अग्नि को बुझा नहीं पा रही है- इसलिए आप भी रावण को कहें कि वह श्री राम जी की शरण ग्रहण कर ले।
इस पर ऋषि नीलासुर ने श्री हनुमान जी से उन्हें भी श्री राम जी की शरण में ले जाने की प्रार्थना की जिसे श्री हनुमान जी ने लंका युद्ध के पश्चात पूरा किया। उपरान्त जब श्री राम जी ने सरयू में गमन करने से पूर्व श्री हनुमान जी को धरा धाम पर रहकर भक्तों का कल्याण करने का आदेश दिया, तब श्री हनुमान जी ने भी ऋषि नीलासुर को अपना महामन्त्री घोषित करते हुए आकाश गामी सूक्ष्म शक्तियों का आधिपत्य करने को कहा और उन्हें प्रेतराज सरकार की उपाधि से विभूषित कर दिया। तब से ऋषि नीलासुर को प्रेतराज सरकार कह कर जाना जाता है।
श्री त्रिमूर्तिधाम में भी बैठकर वे सबके सब तरह के संकट निवारण करते हैं व मनोरथ पूर्ण करते हैं।
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