यह व्रत मंगलवार अथवा शनिवार दोनों दिन किया जा सकता है – लेकिन दोनों दिनों में करने की विधि भिन्न भिन्न है।
जो व्यक्ति इसे मंगलवार को करना चाहे – वह सोमवार के दिन सांयकाल कुछ न खावे। ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर आवश्यक क्रियाओं से निवृत हो – पूजा कक्ष या एकान्त स्थान में बैठ कर – श्री हनुमान जी का पूजन कर व्रत का संकलप धारण करे। सरसो के तेल का अखण्ड दीपक जलावे। बच्चों में 6 केले व 6 लाडू बाटे। दिन भर किसी भी चीज का सेवन न करे। साँझ को सूर्यास्त से पूर्व मीठा भोजन स्वयं बना कर – श्री हनुमान जी को भेंट करे और खावे – जितना भोजन बनावे उतना खा जावे यदि न खा सके तो उसे किसी को दे नहीं – जमीन में गढ्ढा खोद कर उसमें दबा दे। जैसा मीठा भोजन प्रथम व्रत में खावे वैसा ही सभी व्रतों में खावे। ऐसा नहीं कि पहले में चूरमा खाया तो दूसरे में मीठे चावल बनाकर खा लिए तीसरे में मीठी रोटी खाली और चौथे में कुछ और।
यदि सकाम भावना से किसी मनोरथ हेतु व्रत करना हो तो ग्यारह व्रत करे – निष्काम हो तो सात व्रत करें – अधिकाधिक 41 व्रत किये जा सकते हैं। रात्रि काल में जप जागरण करना विशेष फलदायी होता है अशक्त अवस्था में यदि सोना ही हो तो जमीन पर सोवें।
और शनिवार को यदि यह व्रत करें तो सभी क्रियाएँ मंगलवार की तरह हैं। किन्तु इस व्रत में केले और लाडू बाँटने नहीं है – और साँझ को केवल दूध और केलों का भोजन ही करना है – और कुछ नहीं खाना। इन व्रतों को स्त्रियाँ भी कर सकती हैं- पर रजस्वला न हो। यदि उस दिन मासिक धर्म की संभावना हो तो भी प्रभु से प्रार्थना कर व्रत धारण करने से दोष नहीं लगता।