परिचय
‘हरी अवतार हेतु जेहि होई, इदमित्थम कही जाये न सोई’
श्री हरी – श्री विष्णु – श्री परमात्मा के अवतार का यह कारण है कि वह कारण है, ऐसा निश्चय पूर्वक कोई नहीं कह सकता, फिर भी –
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥
श्री मदभवद्गीता ४/६-७ के अनुसार श्री परमात्मा के कारण में धर्म का विनाश आदि भी एक कारण है। वे लीला करने के लिए पधारते हैं व भक्तों को परमानन्द का दान करने के लिए, उनका दुःख संकट निवारण कर उन्हें सुख प्रदान करने के लिए ही वे जगत में बार बार अवतार लेते हैं|
वैसे तो जगत के कण कण में वे व्याप्त हैं। किन्तु लीला प्रकट करने के लिए वे किसी भी रूप में प्रकट होते हैं – कभी जीव रूप में, कभी सूक्ष्म रूप में और कभी मूर्ति रूप में और इस कारण हेतु वे किसी विशेष स्थान का ही चयन करते हैं
और –
श्री त्रिमूर्तिधाम ऐसा ही परम दिव्य धाम है – जहाँ पर प्रभु की दिव्यता को साकार होते हुए अपने इन्हीं नेत्रों से देखा जा सकता है। यह धाम शिवालिक की सुरम्य पर्वत श्रृंखला के मध्य रम्य पर्वत शृंग जो हिमाचल प्रदेश का प्रदेश द्वार है, हरियाणा प्रदेश के पंचकुला जनपद के उत्तर की ओर फैली परवाणु नाम से विख्यात् पर्वत शिखा जो अपने आप में मनोरम और दिव्य है के बीच मुकुट मणि की तरह सुशोभित है|
श्री त्रिमूर्तिधाम पञ्चतीर्थ – का शाब्दिक अर्थ है – वह तीर्थ जहाँ 5 दिव्य विग्रह का वास हो…
इन्हीं 5 परम दिव्य साकार विग्रहों का परमधाम है श्री त्रिमूर्तिधाम- जहाँ बैठकर भक्तजन परमानन्द की अनुभूति प्राप्त करते हैं- जिसके कण-कण में अलौकिकता का अनुभव कर श्रद्धालुजन इस की दिव्यता के गीत गाते हैं- जहाँ बैठने से सभी रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं।
महर्षि भृगु जी
अर्चना पूजन सूची
पोशाक नियम एवं पूजन पोशाक नियम
मुख्य कार्यक्रम
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सेवक के लिए अमर्यादित परिधान वर्जित है – निर्धारित परिधान.. →
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