ॐ विकटाननाय नमः श्री रामाय नमः श्री हनुमते नमः
जीवन में अकसर सुबह से रात तक काम ही काम में उलझा इंसान तन और मन से थक कर अशांत हो जाता है। उस विश्रान्ति को नष्ट करने के लिए वह भिन्न भिन्न मनोरंजनों की तलाश में रहता है। मनचाहे मनोरंजन से वह चाहे अल्पकाल के लिए ही हो, अपने मन की थकान को दूर कर निद्रा में चला जाता है। फिर सुबह उसी परम्परा में चलकर अपने दिनों को लगभग इसी प्रकार से बिताता है।
हम भारतीय भाग्यवान है – कि कालान्तर में ऋषियों मुनियों व देवों ने मानवों की इस अशांति को समझा और उसे दूर करने के लिए विभिन्न पर्वों का निर्माण कर दिया, ताकि मानव मात्र उस पर्व के दिन उल्लासमय होकर विश्रान्ति को नष्ट कर उल्लसित हो सके व धर्म मार्ग पर चलते हुए जीवन में उन्नतिशील भी हो सके।
वासान्तिक नवरात्र हों, शारदीय नवरात्र हों या रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, दशहरा, दिवाली आदि पर्व हों – जिनमें देव पूजा आराधना करते हुए मानव मन विश्रान्ति से दूर चला जाता है। प्रदेशों में मनाये जाने वाले अनेक विभिन्न पर्व, मेले, नृत्य, संगीत आदि का समायोजन मानव मन को शान्ति प्रदान करते हैं। इन पर्वों मेलों आदि के पीछे चाहे कोई भी कथा प्रसंग हो वह सब अनुशंसनीय ही है। ऐसा ही एक महापर्व है वसन्तोत्सव (होली) जिसमें भिन्न-भिन्न रंगों से होली खेलते प्राणी एक दूसरे को रंगो से ऐसा रंगीन बना देते है कि उसका चेहरा बेतुका और वैभवहीन हो जाता है, जिससे उसकी पहचान भी कठिन हो जाती है।
यह पर्व कब से मनाया जा रहा है – चाहे इसका ठीक-ठीक वर्णन कहीं भी प्राप्त नहीं है – पर इसके पीछे की कथा को होलिका दहन के साथ जोड़ दिया गया है।
सदियों से यह रंगों का त्योहार अति वैभव पूर्ण व उल्लासमय रूप में मनाया जाता रहा पर अब इसमें कई प्रकार की कुरीतियों का समावेश होता जा रहा है – रंगों की मार अभद्र हो गई है, बनावटी कैमिकल से बने रंग इस त्योहार का वैभव लुप्त करते जा रहे हैं।
कहाँ तो जड़ी बूटियों, फूलों से बने अबीर गुलाल कुमकुम आदि रंग जो चेहरों को चमका जाते थे। कहाँ सत्यानाशी बनावटी रंग जो आदमी का हुलिया ही बिगाड़ जाते हैं। इस एक कारण से भी प्राणियों का एक वर्ग इस उल्लासमय पर्व से दूर रहकर कलान्त हृदय किसी एकान्त स्थान में अपना यह दिवस व्यतीत करने पर मजबूर सा हो गया है।
अब घिसी पिटी परम्परा को तिलांजलि दे, श्री त्रिमूर्तिधाम पंचतीर्थ में यह त्योहार देवों की सन्निधी में उल्लास के साथ विभिन्न फूलों की वर्षा करते हुए – इत्र आदि की सुगन्ध विखेरेते हुए – भजन, कीर्तन, संगीत का समायोजन करते हुए मनाया जाता है – उपरान्त सुन्दर व्यजनों का रसास्वादन इसमें और भी पूर्णता भर देता है।
वसंतोत्सव (होली) के सुन्दर त्योहार को मार्च 10, 2020 भौमवार (मंगलवार ) को निम्न कार्यक्रमानुसार उल्लास से मनायें।
- प्रातः 8ः00 बजे श्री हनुमान जी का वन्दन
- प्रातः 8ः30 बजे देवों का उत्सव स्थल पर आगमन
- प्रातः 9ः30 बजे देवों का वन्दन पूजन गीत संगीत
- संगव 10ः30 बजे पुष्प वर्षा – मोदक लूटन
- संगव 11 बजे देवों का प्रस्थान
- संगव 11ः30 बजे प्रीति भोज