महर्षि श्री भृगु जी की आरती

स्तुति

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्। तत् पदम् दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।।
नमस्ते भगवते भृगुदेवाय वेधसे। देव देव नमस्तुते भूत भावन पूर्वज।।

आरती

जय भृगुदेव हरे, जय जय भृगुदेव हरे। स्वामी जय जय भृगुदेव हरे।।
सत्य सनातन स्वामी, सत्य सनातन स्वामी, जग अघ दूर करे।
जय जय भृगुदेव हरे।।

अभयमुद्रा भय हारिणी, वरद हस्त सोहे। स्वामी वरद हस्त सोहे।।
अनुपम छवि सुखदायनी, अनुपम छवि सुखदायनी, त्रिभुवन मन मोहे।
जय जय भृगुदेव हरे।।

हृदय अज्ञान निवारण, सर्वसिद्धि दाता। स्वामी सर्वसिद्धि दाता।।
दुःख भंजन सुख अंजन, दुःख भंजन सुख अंजन, निश्चल गति दाता।
जय जय भृगुदेव हरे।।

करुणासिन्धु जग पालक, त्राता भय हारी। स्वामी त्राता भय हारी।।
हरि रूप सर्व व्यापक, हरि रूप सर्व व्यापक, भोले भण्डारी।
जय जय भृगुदेव हरे।।

भक्ति ज्ञान प्रदाता, भक्तन हितकारी। स्वामी भक्तन हितकारी।।
भुक्ति मुक्ति के दाता, भुक्ति मुक्ति के दाता, त्रिभुवन सुखकारी।
जय जय भृगुदेव हरे।।

नित्य निरञ्जन देव, अखिल लोक स्वामी। प्रभु अखिल लोक स्वामी।।
दयाधाम गुण सागर, दयाधाम गुण सागर, तुम अंर्तयामी।
जय जय भृगुदेव हरे।।

भृगुदेव जी की आरती, सब का दुःख हरती। स्वामी सब का दुःख हरती।।
सभी भव त्रास मिटा कर, सभी भव त्रास मिटा कर, अज्ञान तिमिर हरती।
जय जय भृगुदेव हरे।।

भृगुदेव जी की आरती, जो कोई जन गावे। स्वामी प्रेम सहित गावे।।
मिले बैकुण्ठ परम पद, मिले बैकुण्ठ परम पद, भक्ति मुक्ति पावे।
जय जय भृगुदेव हरे।।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव। त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव। त्वमेव सर्व मम देव देव।

ॐ श्री विष्णु रुपाय श्री महर्षि भृगवे नमो नमः।