श्री प्रेतराज जी चालीसा

दोहा

श्री भृगु कमल पद ध्यान धर, श्री हनुमत चरण चित्तलाय। श्री प्रेत चालीसा कहूँ, देवी-देव मनाये ॥

चौपाई

जय श्री प्रेतराज सुखसागर, करूणामय दया के सागर। प्रबल वीर भव कष्ट हारी, जय श्री प्रेतराज सुखकारी ॥ शीश मुकुट सुहावन सोहे, रूप तेरा जग पावन मोहे। गल मणिमाल मनोहर साजे, तेज लखि सूरज भी लाजे ॥

हाथ चक्र अति विकट कराला, धारण किए धनुष और भाला। रत्न जटित सिंहासन सोहे, छत्र चंवर सब के मन मोहे || सुर नर मुनि जन सब यश गावें राम दूत के दूत हाथी की असुवारी करते भक्त जनों का संकट हरते।

दूतों की सेना अतिभारी, साथ चले सब देते तारी। जो हनुमान जी की सेवा करते, दुःख संकट उनका हर लेते। भूत पिशाच चित्र बैताला, सबको है बन्धन में डाला। जय हनुमान के सेवक नामी, मनोकामना पूरक स्वामी

भौतिक जग की सारी पीड़ा, हरते करते करते क्रीड़ा। कठिन काज हैं जग के जेते, तव प्रताप पूरण हो तेते ॥ भूतपति अति विकट कराला, संकट हरण जय दीन दयाला श्रद्धा भक्ति से सिमरन करते, उनके सभी कष्ट तुम हरते ।।

तन मन धन समर्पित जो करते, कठिनाई सब उनकी हरते। तेरे सिवा कौन प्रभु मेरा, केवल एक आसरा तेरा ॥ अरज लिए खड़ा दरबार, प्रभु करो मेरा उद्धार श्वेत ध्वजा उड़ रही गगन में, नाँचू देख मगन हो मन में ॥

मेरों सेर गाँव प्रभु नौका ठिकाना बना अब वहाँ बली का। प्रातः काल स्नान करावे, तेल और सिन्दूर लगाये || श्वेत पुष्प माला पहिनावे, इत्र और चन्दन छिड़कावे । ज्योति जला आरती उतारे, जयति जय श्री प्रेत पुकारे ||

उनके कष्ट हरे बलवान, जयति जय श्री प्रेत महान महिमा सब जाने प्रभु तेरी, कष्ट हरें करें न देरी ।। इच्छा पूर्ण करते जन को, राजा हो या रंक सभी की। तप तेज आपका अपार, जिसको जाने सब संसार ।

दुष्टजनों को देते दण्ड, तोड़ते उनके सब पाखण्ड। चरणों में जो अरजी लगावे, सकल कष्ट उसके मिट जावे ।। आपके दूत बड़े बलवान, पकड़े नित्य नए शैतान। • गुस्सा प्रेतराज जब खावें, उत्पाती सब पकड़े जावें ।।

पलटन है बलवान तुम्हारी, जिससे काँपे भूमि सारी। धर्म की तुम राह चलाते, जिन और भूतों को भगाते ॥ भक्त कष्ट हर शत्रुहन्ता, जय जय प्रेत राज बलवन्ता। जयति जय श्री प्रेत बलधामा, भक्त कष्ट हर पूर्ण कामा॥

भक्त शिरोमणि वीर प्रचंडा, दुष्ट दलन करते निज दण्डा। जयति जय श्री प्रेत बलवाना, महिमा अमित तेरी बलधामा ॥ जो यह पढ़े श्री प्रेत चालीसा, दुख न रहे ताको लव लेसा।। कहे यह दास ध्यान धर तेरा, नित ही मन में करो बसेरा ॥

दोहा

अरि दलन जग पाप हर, मंगल करुणावान। जयति जय भक्त रक्षक, प्रबल प्रेतराज बलवान ।।