- देव पूजन करने से पूर्व स्नान कर शुद्ध होना एवं शुद्ध वस्त्र धारण करना तो होता ही है, पर शिव पूजन करने वाले को सिले हुए वस्त्र पहने हुए नहीं होना चाहिए। पुरूषों के लिए लाँग वाली धोती पहने हुए होना बहुत ही अच्छा है। आसन, जिस पर बैठें, शुद्ध होना चाहिए। पूजा के समय पूर्व या उत्तर मुख बैठना और पूजन का संकल्प करना बहुत ही श्रेष्ठ है। भस्म, त्रिपुण्ड और रूद्राक्ष माला पूजक के शरीर पर विशेष तौर पर होना चाहिए।
- भगवान शंकर की पूजा में केतकी का प्रयोग नहीं होता न ही किसी प्रकार का चम्पा पुष्प चढ़ाया जाता है। भगवान शिव के चरणों में पुष्प चढ़ाये जाने चाहिए, न कि शिवलिङ्ग के ऊपर। पुष्प माला शिवलिङ्ग को पहनाई जा सकती है। सभी देवों के चरणों में ही पुष्प छोड़े जाने चाहिए। शिवलिङ्ग के चरणों में :-
- सोमवार को गेंदे के फूल,
- मंगलवार को आक के फूल,
- बुधवार को धतूरे के फूल,
- वृहस्पतिवार को गुलाब के फूल,
- शुक्रवार को चांदनी के फूल,
- शनिवार को लाल कनेर के फूल,
- रविवार को आक, धतूरा और गेंदे के फूल
किसी पात्र या पत्ते पर रखकर अर्पण करने चाहिए।
- पत्ता आक या एरंड का त्याज्य है।
- शिव पूजा में तुलसी दल और दुर्वा चढ़ाया जाता है।
- तुलसी मंजरी शिव को अधिक प्रिय है।
- नील कमल का पुष्प शिव को बहुत प्रिय है। कुमुदिनी पुष्प अथवा कमलिनी पुष्प का भी प्रयोग शिव पूजा में होता है।
- शिव अभिषेक प्रिय हैं – अतएव उनका अभिषेक विशेष सावधनी से होना चाहिये –
- बिल्व पत्र तो इनकी पूजा में प्रधान है ही, किन्तु उसमें चक्र या वज्र न होना चाहिए न ही पत्र कटा फटा हो। बिल्व पत्रों में कीड़ों द्वारा बनाया हुआ जो सफेद चिन्ह होता है, उसे ही चक्र कहते हैं और बिल्व पत्र की डण्ठल की ओर जो मोटा भाग होता है, उसे ही वज्र कहते हैं, उस भाग को तोड़ देना चाहिए।
- शिवार्पण के हेतु बिल्व पत्र सोमवार व बुधवार के दिन नहीं तोडे़ जाने चाहिये। अभाव में शिव को पहले अर्पण किया बिल्व पत्र जल से शुद्ध करके पुनः चढाया जा सकता है।
- बिल्व पत्र शिवलिङ्ग पर उल्टा चढाया जाता है न कि सीधा।
- बिल्व पत्र तीन दल से लेकर ग्यारह दलों तक के प्राप्त होते हैं। यह जितने अधिक दलों के हों उतने ही उत्तम हैं, पर इनमें यदि कोई दल टूट गया हो तो, चढ़ाने योग्य नहीं होता।
- भगवान शिव की पूजा में खरताल नहीं बजाया जाता।
- शिव की परिक्रमा में सम्पूर्ण परिक्रमा नहीं की जाती। जिधर से चढ़ा हुआ जल निकलता है, उस नाली का उल्लंघन न कर उस से उल्टी दिशा में प्रदक्षिणा की जाती है। पर यदि नाली ढकी हुई हो तो प्रदक्षिणा में कोई दोष नहीं है।
- भगवान आशुतोष शिव को सीधे प्रणाम न करके नन्दी जी के पीछे जाकर दण्डवत करना चाहिये। शिवलिङ्ग और नन्दी के मध्य में से नहीं गुजरना चाहिये।
- स्त्रियों को पाषाणलिङ्ग व धतुलिङ्ग का पूजन करना शास्त्रोक्त नहीं है –
- उन्हें पार्थिव लिङ्ग का (बालू का लिङ्ग) निर्माण करके गृह स्थान में ही पूजन करना चाहिये। भगवती सीता ने – भगवती अञ्जना ने – भगवती अनुसूया ने भी पार्थिव लिङ्ग बना कर शास्त्रानुसार उसका पूजन किया था। किन्तु कलि के इस युग में शिवालयों में नारियाँ अनजाने में पाषाणादि लिङ्ग का पूजन करती इत स्ततः नजर आती हैं। जो कि मर्यादा के प्रतिकूल है।
- हाँ, भगवान शंकर के विग्रह का वह पूजन कर सकती हैं – उसमें कोई दोष नहीं है।
-ः विशेष :-
शिवलिङ्ग पर सतत जलधारा से कलह का नाश होता है।
व
तेल धारा से शत्रुओं का नाश होता है।
व
मधु (शहद) धारा से यक्ष पद की प्राप्ति सम्भव होती है।
व
ईषू रस धारा (गन्ने का रस) से सर्व विद्ध मंगल प्राप्ति होती है।
व
गंगा जल की धारा से भक्ति व मुक्ति की प्राप्ति होती है।
उपरोक्त से अभिषेक करने के पश्चात 11 ब्राह्मणों को भोजन भी करवाना आवश्यक है।
अब जान लें किन-किन पत्र, पुष्पों व द्रव्य को चढ़ाने से कौन सी कामना की सिद्धि होती है :-
- कुशा व दुर्वा – आयु वृद्धि (1 लाख पूजन होने पर)
- कनेर – रोग नाश
- तुलसी – मुक्ति
- हार सिंगार – सुख सम्पत्ति
- आक के फूल – यश वृद्धि
- अखण्डित चावल – लक्ष्मी प्राप्ति
- जवा व राई के फूल – शत्रु नाश
- तिल – पाप नाश
- दश करोड पार्थिव लिङ्ग पूजा हो – फूल चावल चन्दनादि की अखण्ड धारा हो – प्रति मंत्र एक कमल – शतपत्र – बेलपत्र चढाते रहें अगर शंख पुष्प हो तो विशेष है – इस से राजा पद प्राप्त होना सम्भव होता है।
- रूद्र पूजा चावल व तिल से करें – सुन्दर वस्त्र चढावें – श्री फल, गन्ध, पुष्प, धूप दीप विशेष हो।
- उपरान्त 12 ब्राह्मणों को भोजन – दक्षिणा – वस्त्र इत्यादि के साथ करावें।
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