श्यन करो प्रभु, प्रेम से हुई तुम्हारी रात,
तब तक सपनों में खो जाओ, जब तक न हो प्रभात।
हे माधव, हे नृसिंह स्वामि,
पदमनाभम् अन्तरयामी।
जगती तल के, तम को समेटो,
अनन्त स्वामि चैन से लेटो।
सो ओ नाथ, अब नयन मूँद लो,
शान्त हो लेटो, शुभ स्वप्न लो।
आनन्द कानन, लक्ष्मी स्वामि,
धीर चित्त हो, सो ओ स्वामि।
सोते सोते कृपा करना,
हम भक्तों को न विस्मरणा।
थकित चकित् निहारेंगे स्वामि,
कृपा रखना अन्तरयामी।
अपने हृदय से हमे लगाकर,
चित्त अपने में हमे बसाकर।
याद विस्मृति में भी करना,
अंश तुम्हारे न विस्मरणा।