सोइये हे अनन्त अब, निशा छा रही,
मंयक नभ में दिख रहे, प्रभा है जा रही।
पक्षियों का शोर अब, सुना न जा रहा,
वायु वेग थम गया, अन्धेरा छा रहा।
श्यन की रात हे प्रभु – पल पल है छा रही,
विश्राम अब करो प्रभु, निद्रा बुला रही।
सोवो नाथ निद्रा में, अब आँखे मूंद लो,
तन मन को दो विश्राम, विनय एक ये सुन लो।
हम को विसारना नहीं, सहारे तुम्हारे हैं,
हृदय में अपने रखना, सेवक तुम्हारे हैं।
खो जाओ अब निद्रा में, है रात बीतती,
प्रिया तुम्हारी देख रही, थकित चकित सी।
प्रभु से प्रेरित
अमर दास
बुधवार, 17 जुलाई 2024
श्री त्रिमूर्तिधाम पञ्चतीर्थ आश्रम दिव्य देशम् 107