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सेवकों के ध्यानार्थ

  1. सेवक के लिए अमर्यादित परिधान वर्जित है – निर्धारित परिधान पीत धोती कुर्त्ता अथवा पीत कुर्त्ता पायजामा पहन कर धाम में वास करें।
  2. सेवा में मौन को महत्व दें।
  3. सेवा का अहंकार न करें।
  4. परनिन्दा, चुगली, द्वेष आदि न करें।
  5. बाहर से लाई गई कोई भी वस्तु सेवनीय नहीं है।
  6. स्वयं भी मर्यादित रहें तथा दूसरों को भी मर्यादा में रहने के लिए प्रेरित करते रहें।
  7. श्री धाम में जहाँ प्रवेश वर्जित किया गया हो – बिना आज्ञा प्रवेश न करें।

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भक्तों के ध्यानार्थ

  1. श्री त्रिमूर्तिधाम में प्रभु मौन की भाषा समझते हैं – अतएव भक्तों को मौन भाव से उनके समक्ष प्रार्थित होना चाहिए। जप वगैरा मन ही मन में करें।
  2. श्री त्रिमूर्तिधाम में अमर्यादित परिधान पहन कर आना व अमर्यादित आचरण निन्दनीय है।
  3. बाहर से लाई कोई भी वस्तु धाम में सेवनीय नहीं है।
  4. श्री बाला जी के समक्ष नमन करें – वहां न तो बैठें न ही खड़े हों – जो भी प्रार्थना वगैरा करनी हो श्री प्रेतराज दरबार में करें। श्री बालाजी एकाग्र चित भगत कि पुकार सुनते हैं – इस लिए उनके समक्ष अनावश्यक जय जय कार करना भी अशोभनीय है।

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नियमावली

श्री त्रिमूर्तिधाम में पालनीय आवश्यक नियम-

  • श्री त्रिमूर्तिधाम में सिगरेट, बीड़ी, चाय पीना, पान खा कर आना तथा और भी सभी तरह के नशे निषिद्ध हैं।
  • कोई भी यात्री तहमद, चमड़े के परिधान अभद्र पोशाक पहन कर न आवें।
  • अपने जूते चप्पल यथा स्थान पर खोल कर हाथ मुंह धो कर कुल्ला करके मन्दिर में आवें ।
  • कोई भी रजस्वला शुद्ध  होकर 6 दिन के बाद ही धाम पर आवे तथा शुद्ध होने के बाद ही भभूति भोग या जल और पेशी का लड्डू खावें।
  • गोद के बच्चों को यथा सम्भव धाम पर न लावें क्योंकि उनका अनायास रूदन और टट्टी पेशाब कर देना धाम की शान्ति और पवित्रता भंग कर देता है।
  • प्रत्येक व्यक्ति को स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहन कर शुद्ध चित्त व समर्पण भाव से दरबार में आना चाहिए क्योंकि प्रभु के प्रति समपर्ण ही सबसे बड़ी निष्ठा है जिससे भाव सिद्धि प्राप्त होती है।
  • श्री बाला जी सभागार में पुरूषों को बाला जी के दाईं तरफ और नारियों को बाईं तरफ खड़ा रहना चाहिए । जब आरती हो रही हो तो इस नियम का पालन अत्यावश्क है।
  • मन्दिर के प्रांगण में किसी प्रकार की बातचीत हंसी मजाक व किसी के साथ अभद्र व्यवहार नहीं करना चाहिए।
  • मन्दिर की ओर पैर फैलाकर पीठ फेर कर बैठना और सोना अभद्रता है जिसे श्री बाला जी कतई पसन्द नहीं करते।
  • श्री त्रिमूर्तिधाम की किसी भी मूर्ति को स्पर्श करना स्वयं जल, प्रसाद या फूल बगैरा चढ़ाना सर्वथा वर्जित है कोई भी वस्तु चढ़ानी हो तो पुजारी के हाथ में दें वह स्वयं भेंट किया गया पदार्थ मूर्ति पर चढ़ा देंगे।
  • रूपया पैसा हुण्डी में प्रेम से डालें । वह फैंके नहीं क्योंकि प्रेम से अर्पण द्रव्य ही प्रभु स्वीकार करते हैं । यदि आप मन्दिर को कोई विशेष धनराशि भेंट कर रहे हों तो उसकी रसीद पुजारी से ले लें तांकि धनराशि का दुरूपयोग न हो सके।
  • कोई भी पूजन सामग्री स्वयं स्पर्श न करें न चोला इत्यादि या भोग मूर्ति पर स्वयं चढ़ावें।
  • जिस किसी को सवामनी भण्डारा ब्रह्मभोज हवन इत्यादि करवाना हो या चोला चढ़ाना हो वह संस्थापक महंत जी के पास अथवा मुख्य पुजारी के पास ही निवेदन करे।
  • सभी को अखाद्य आहार मांस अण्डा इत्यादि व लहसुन, प्याज आदि निषिद्ध पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिये।
  • सभी स्त्री-पुरूष पूर्ण ब्रह्मचर्य व नियमित संयमित होकर ही श्री त्रिमूर्तिधाम की सीमा में रहें।
  • कोई भी व्यक्ति किसी अन्य का प्रसाद ग्रहण न करें क्योंकि इससे प्रसाद ग्रहण करने वाले पर प्रसाद बांटने वाले का संकट आ सकता है । केवल मन्दिर से मिलने वाला प्रसाद ही ग्रहण करें।
  • शस्त्र, रेडियो वगैरा लेकर आना, कैमरे से मन्दिर के अन्दर बाहर या किसी रोगी का पेशी लेते हुए फोटो लेना और ऐसे ही अन्य अनुचित कार्य सर्वथा वर्जित हैं।
  • श्री त्रिमूर्तिधाम में ‘श्री अञ्जना माता जी की रसोई’ के अन्तर्गत अन्नक्षेत्र की भी व्यवस्था है, उसके लिए सभी प्रकार का दान भी स्वीकार किया जाता है।
  • मनोकामना पूर्ति हेतु या मनोकामना पूर्ति के पश्चात कोई भी व्यक्ति चोला चढ़ाना चाहे, या सवामनी भण्डारा करवाना चाहे तो उसकी व्यवस्था उचित राशि लेने के पश्चात मन्दिर की ओर से होगी । मन्दिर सभी प्रकार का दान स्वीकार करता है।
  • श्री त्रिमूर्तिधाम में बाहर से लाकर कोई खाद्य पदार्थ या अन्न इत्यादि न खाएं इससे आपका अनिष्ट भूत, प्रेत आदि द्वारा हो सकता है।
  • मनोकामना पूर्ति या पुण्य प्राप्ति हेतु मंदिर प्रांगण में जागरण किया जा सकता है । जिसके नियम निम्न हैं:-
    • जागरण जप ध्यान करते हुये चुपचाप रहें।
    • उससे पहले स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहन लें।
    • जागरण हेतु रात्रि के प्रथम पहर में ही बैठ जावें व अपने आसन पर ही बैठे रहें केवल विशेष परिथिति में ही अपने आसन से उठें।
    • जो अशक्त व्यक्ति निरन्तर नहीं बैठ सकते वह रात्रि प्रथम पहर से रात्रि 12 बजे तक बैठें उसके पश्चात् धाम से बाहर जा कर विश्राम कर सकते हैं और ब्रह्ममुहूर्त से पूर्व नहा धोकर पुनः सूर्योदय तक बैठें।
    • जागरण पूरे मन और निष्ठा से करें मात्र दिखाने के लिए न करें।
  • श्री बाला जी को केवल नारियल का भोग ही लगता है । अतः अन्य प्रकार का भोग न लावें।

विनीत-

अमर दास रत्न, संस्थापक महन्त,

श्री त्रिमूर्तिधाम, भैरों की सेर

कालका (हरियाणा)-133 302

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भृगु स्तोत्रम्

आदि देव! नमस्तुभ्यं प्रसीदमे श्रेयस्कर। पुरुषाय नमस्तुभ्यं शुभ्रकेशाय ते नमः॥

तत्व रथमारूढं ब्रह्म पुत्रं तपोनिधिम्। दीर्घकूर्चं विशालाक्षं तं भृगुं प्रणमाम्यहम्॥

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श्री बाला जी से शयन प्रार्थना

नयनों में नींद भर आई श्री बालाजी को

कौन श्री बालाजी की सेज बिछावे 

कौन ओढ़ावे रजाई श्री बालाजी को। 

नयनों में नींद भर आई श्री बालाजी को

आप भक्त सब सेज बिछावे 

केसरी ओढ़ावे रजाई श्री बालाजी को।

नयनों में नींद भर आई श्री बालाजी को

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श्री राम जी की आरती

जगमग, जगमग, जोत जगी है, राम आरती, होन लगी है। जगमग, जगमग, जोत जगी है।

मन्द मुस्कान, स्मित मुस्काई, अदभुत छवि, कैसी है बनाई,
भव तरन की अब – आस जगी है। — राम आरती, होन लगी है। 

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जगमग, जगमग, जोत जगी है, राम आरती, होन लगी है। जगमग, जगमग, जोत जगी है।

मन्द मुस्कान, स्मित मुस्काई, अदभुत छवि, कैसी है बनाई,
भव तरन की अब – आस जगी है। — राम आरती, होन लगी है। 

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जगमग, जगमग, जोत जगी है, राम आरती, होन लगी है। जगमग, जगमग, जोत जगी है।

मन्द मुस्कान, स्मित मुस्काई, अदभुत छवि, कैसी है बनाई,
भव तरन की अब – आस जगी है। — राम आरती, होन लगी है। 

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