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जय गुरुदेव – श्री गुरु वन्दना

जय गुरुदेव, जय गुरुदेव, जय गुरुदेव, जय जय गुरुदेव

गुरु हैं गंगा, गुरु हैं जमुना, गुरु सरस्वति धारा,
ज्ञान के सागर गुरु हमारे, जगती का उजियारा,
जय गुरुदेव – जय जय गुरुदेव

गुरु हंस हैं, गुरु गरुड़ हैं, गुरु मोर मतवाले,
ज्ञान दे सब को रोशन करते, सबके हैं रखवाले,
जय गुरुदेव – जय जय गुरुदेव

बरगद की छाया से शीतल, आम्र फल से मीठे,
समभाव दृष्टा होकर, वचन सुनावे तीखे,
जय गुरुदेव – जय जय गुरुदेव

हृदय मल कब दूर कर दिया, कोई जान न पाता,
रक्षा सबकी करते निश्दिन, रहें सदा अज्ञाता,
जय गुरुदेव – जय जय गुरुदेव

कृपा गुरु की जो कोई पावे, परमहंस बन जावे,
सब द्वन्दों से मन हो निर्मल, भक्ति मुक्ति पावे,
जय गुरुदेव – जय जय गुरुदेव

सदा ही आपका
अमर दास

भृगुवार , 12 जुलाई 2024
श्री त्रिमूर्तिधाम पञ्चतीर्थ आश्रम दिव्य देशम् 107

अनन्त श्यन भजन

सोइये हे अनन्त अब, निशा छा रही,
मंयक नभ में दिख रहे, प्रभा है जा रही।
पक्षियों का शोर अब, सुना न जा रहा,
वायु वेग थम गया, अन्धेरा छा रहा।

श्यन की रात हे प्रभु – पल पल है छा रही,
विश्राम अब करो प्रभु, निद्रा बुला रही।
सोवो नाथ निद्रा में, अब आँखे मूंद लो,
तन मन को दो विश्राम, विनय एक ये सुन लो।

हम को विसारना नहीं, सहारे तुम्हारे हैं,
हृदय में अपने रखना, सेवक तुम्हारे हैं।
खो जाओ अब निद्रा में, है रात बीतती,
प्रिया तुम्हारी देख रही, थकित चकित सी।

प्रभु से प्रेरित
अमर दास

बुधवार, 17 जुलाई 2024
श्री त्रिमूर्तिधाम पञ्चतीर्थ आश्रम दिव्य देशम् 107

प्रभु का श्यनदिन

श्यन करो प्रभु, प्रेम से हुई तुम्हारी रात,
तब तक सपनों में खो जाओ, जब तक न हो प्रभात।

हे माधव, हे नृ‌सिंह स्वामि,
पदमनाभम् अन्तरयामी।
जगती तल के, तम को समेटो,
अनन्त स्वामि चैन से लेटो।

सो ओ नाथ, अब नयन मूँद लो,
शान्त हो लेटो, शुभ स्वप्न लो।
आनन्द कानन, लक्ष्मी स्वामि,
धीर चित्त हो, सो ओ स्वामि।

सोते सोते कृपा करना,
हम भक्तों को न विस्मरणा।
थकित चकित् निहारेंगे स्वामि,
कृपा रखना अन्तरयामी।

अपने हृदय से हमे लगाकर,
चित्त अपने में हमे बसाकर।
याद विस्मृति में भी करना,
अंश तुम्हारे न विस्मरणा।

प्रभु से प्रेरित
अमर दास

बुधवार, 17 जुलाई 2024
श्री त्रिमूर्तिधाम पञ्चतीर्थ आश्रम दिव्य देशम् 107

आरती श्री सीता जी की

आरती जनक दुलारी की – शोभामय सीता प्यारी की।
विद्यादात्री जगत विधात्री
चन्द्र वदना – सुखकारी – माता चन्द्रवदना ०
मनोरमा जय चक्रहस्ता
जय भयहारी की – । १ । आरती ०

शोभा सिन्धु सुसौम्या माँ
दया करो अघहारी – माता दया करो ०
अति आनन्दा परम सुगन्धा
जय जयकारी की – । २ । आरती ०

सदा शुभकारी अति हितकारी
आये शरण तिहारी – माता आये शरण ०
क्रियावती सुकुमारी जय जय
भव भञ्जनहारी की – । ३ । आरती ०

भक्ति मुक्ति की दात्री रम्या
सदा – सदा जयकारी – माता सदा सदा ०
परम मनोरमा कञ्चन वदना
सीता प्यारी की – । ४ । आरती ०

सरल स्वरूपा भगवद् रूपा
जाऊँ मैं बलिहारी – माता जाऊँ मैं ०
हाथ जोड़ सदा करो आरती
सीता सन्नारी की – । ५ । आरती ०

श्री राम जी के 108 नाम

1. ॐ श्री रामाय नमः

2. ॐ राम भद्राय नमः

3.  ॐ राम चन्द्राय नमः

4. ॐ रघु राजाय नमः

5. ॐ रघुपतये नमः

6. ॐ रघु वीराय नमः

7.  ॐ रघुकुल भूषणाय नमः

8.   ॐ राजीव लोचनाय नमः

9.  ॐ राघवाय नमः

10. ॐ रघुत्तमाय नमः

11. ॐ रक्ष कुल निहन्ताय नमः

12. ॐ रघु पुङ्गवाय नमः

13. ॐ आत्मवते नमः

14. ॐ अपरिच्छेदाय नमः

15. ॐ अनसूयकाय नमः

16. ॐ अकल्मषाय नमः

17. ॐ अघनाशनाय नमः

18. ॐ आदि पुरुषाय नमः

19. ॐ अध्यात्मयोग निलयाय नमः 

20. ॐ अरिहन्ताय नमः

21. ॐ असुर मर्दनाय नमः

22. ॐ असुर निकन्दनाय नमः

23. ॐ आनन्दाय नमः

24. ॐ आनन्ददाय नमः

25. ॐ कौशलेयाय नमः

26. ॐ कौशल्या नन्दनाय नमः

27. ॐ कोदण्डिने नमः

28. ॐ कान्ताय नमः

29. ॐ कवये नमः

30. ॐ कपि पूज्याय नमः

31. ॐ कीर्तने नमः

32. ॐ कल्याणमूर्तये नमः

33. ॐ केशवाय नमः

34. ॐ कल्याण प्रकृतये नमः

35. ॐ कामदाय नमः

36. ॐ कर्त्रे नमः

37. ॐ खड्गधराय नमः

38. ॐ खरध्वंसिने नमः

39. ॐ गुण सम्पन्नाय नमः

40. ॐ गोविन्दाय नमः

41. ॐ गोपवल्लभाय नमः

42. ॐ गरुड़ध्वजाय नमः

43. ॐ गोपतये नमः

44. ॐ गोप्त्रे नमः

45. ॐ गभीरात्मने नमः

46. ॐ ग्रामण्ये नमः

47. ॐ गुण निधये नमः

48. ॐ गोपाल रूपाय नमः

49. ॐ गुण सागराय नमः

50. ॐ गुण ग्राहिणे नमः

51. ॐ गोचराय नमः

52. ॐ गुणाकराय नमः

53. ॐ गुण श्रेष्ठाय नमः

54. ॐ गुरवे नमः

55. ॐ चक्रिणे नमः

56. ॐ चण्डांशवे नमः

57. ॐ चाणूरमर्दनाय नमः

58. ॐ चिद् रूपाय नमः

59. ॐ चण्डाय नमः

60. ॐ चतुर्वर्गफलाय नमः

61. ॐ जितारये नमः

62. ॐ जयिने नमः

63. ॐ जीवानां वराय नमः

64. ॐ ज्योतिष्मते नमः

65. ॐ जिष्णवे नमः

66. ॐ जनार्दनाय नमः

67. ॐ जगत्भर्त्रे नमः

68. ॐ जगत्कर्त्रे नमः

69. ॐ जगतां पतये नमः

70. ॐ जगत्धारिणे नमः

71. ॐ जगदीशाय नमः

72. ॐ जगत पालन हाराय नमः

73. ॐ जानकी वल्लभाय नमः

74. ॐ जित क्रोधाय नमः

75. ॐ जितारातये नमः

76. ॐ जगन्नाथाय नमः

77. ॐ जटायु प्रीति वर्धनाय नमः

78. ॐ जगत ताराय नमः

79. ॐ तत्त्वज्ञाय नमः

80. ॐ तत्त्व वादिने नमः

81. ॐ तत्व स्वरूपिणे नमः

82. ॐ तपस्विने नमः

83. ॐ ताटकान्तकाय नमः

84. ॐ तपनाय नमः

85. ॐ तपोवासाय नमः

86. ॐ तमसश्छेत्त्रे नमः

87. ॐ तत्वात्मने नमः

88. ॐ ताराकाय नमः

89. ॐ दान्ताय नमः

90. ॐ दृढ़ प्रज्ञाय नमः

91. ॐ दृढ़ाय नमः

92. ॐ दया कराय नमः

93. ॐ दुरा सदाय नमः

94. ॐ दात्रे नमः

95. ॐ दुर्ज्ञेयाय नमः

96. ॐ देव चूडामणये नमः

97.  ॐ दिव्याय नमः

98.  ॐ धनुर्वेदाय नमः

99.  ॐ धराधराय नमः

100. ॐ ध्रवाय नमः

101. ॐ ब्रह्मणे नमः

102. ॐ बलिने नमः

103. ॐ वामनाय नमः

104. ॐ विधात्रे नमः

105. ॐ विष्णवे नमः

106. ॐ विश्व योनये नमः

107. ॐ वेद वित्तमाय नमः

108. ॐ श्री त्रिमूर्तिधाम वासिने नमः

मर्यादा पुरुषोत्तम राम जी – जिनके नाम रस का पान नित्य उमापति शिव करते हैं – श्री हनुमान जी जिनकी सेवा में सदैव संलिप्त हैं – देवर्षि नारद जी ने जिस रसीले आनन्ददायी ‘ राम ‘ नाम पर अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया – उन्हीं के पावन अष्टोत्तरशत नाम का ध्यान पूजन जप व हवन आप करेंगें – तब आपको सब कुछ प्राप्त होगा – जो आपको चाहिये होगा। 

अमरदास

श्री त्रिमूर्तिधाम पञ्चतीर्थ आश्रम, कालका – 133302

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हनुमान चालीसा अर्थ सहित

(यह चालीसा सूर्यास्त के समय पढ़ने का अधिक महत्व है।)

दोहा

श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि । बरनउँ रघुवर विमल जसु, जो दायकु फल चारि ।

श्री गुरु जी के चरण कमलों की रज (धूल) से अपने मन दर्पण को साफ करके में श्री रघुनाथ जी के निर्मल का वर्णन करता हूँ। जो चारों फलों (धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष) को देने वाला है।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार | बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेस विकार |

मैं अपने आप को बुद्धिहीन जानको श्री पवन कुमार हनुमान जी का स्मरण करता हूँ। हे पवन कुमार जी ! आप मुझे बल बुद्धि विद्या प्रदान करें तथा मेरे सभी क्लेशों और दोषों को मिटा दे

चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥१॥

ज्ञान तथा सभी गुणों के सागर श्री हनुमान जी आपकी जय हो । तीनो लोक आपकी कीर्ति से दीप्त हो रहे हैं, हे कपिराज आपकी जय हो।

राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनि पुत्र पवन सुत नामा ॥२॥

हे रामदूत आप अपार बल के भण्डार हैं, आप अंजनि माता के पुत्र हैं और पवन सुत आप का नाम है ।

महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी |३|

हे परम वीर हनुमान जी आप वज्र के समान अंगों वाले, दुष्ट बुद्धि का निवारण कर अच्छी मति प्रदान करने वाले संगी हैं ।

कंचन वरन विराज सुवेसा, कानन कुंडल कुंचित केसा ॥४॥

श्री हनुमान जी की देह स्वर्ण सदृश रंग वाली है। उनका सुन्दर वेष है, कानों में कुंडल पहने हुए हैं तथा उनके बाल घुंघराले हैं ।

हाथ बज्र औ ध्वजा विराजे, काँधे मूँज जनेऊसाजै | ५ ||

श्री हनुमान जी के हाथों में वज और ध्वजा सुशोभित है, कधे पर मूज का यज्ञोपवीत शोभा पा रहा है ।

संकर सुवन केसरी नन्दन, तेज प्रताप महा जग बंदन |६|

हे शंकर के अवतार केसरी नन्दनः आपके महान यश और पराक्रम के कारण आपको सम्पूर्ण जगत वंदन करता है।

बिद्यावान गुनी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर ॥७॥

हे हनुमान जी! आप परम विद्वान गुणवान तथा अत्यन्त कार्य कुशल हैं। श्री राम जी के कार्य करने हेतु सदैव उत्साहयुक्त रहते हैं

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया |८|

श्री राम प्रभु के चरित्र गाथायें सुनने से आपको बड़ा आनन्द प्राप्त होता है । श्री राम जी श्री लखन जी एवम् श्री सीता जी सदैव आपके हृदय में निवास करते हैं ।

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा, बिकट रूप धरि लंक जरावा । ९ ।

श्री हनुमान जी छोटा सा रूप धर कर (अशोक वन में) श्री सीता जी के सम्मुख गये, बाद में उन्होंने विकराल देह धारण करके लंका जलाई।

भीम रूप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज सँवारे |१०|

आपने विकराल रूप धारण कर असुरों का संहार किया तथा श्री रामचन्द्र के समस्त कार्यों को सम्पादित किया ।

लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये |११|

संजीवनी बूटी लाकर श्री लक्ष्मण जी को जब जीवित किया तो भगवान श्री राम ने हर्षित हो आपको (श्री हनुमान जी का) हृदय से लगाया ।

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई | १२ |

श्री राम जी ने आपका बहुत मान बढ़ाया और कहा कि तुम मुझे भैया भरत जी के समान प्रिय हो ।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं, अस कहि श्री पति कंठ लगावैं ॥१३॥

सहस्त्रों मुख वाले इन्द्र भी तुम्हारे यश का गान करते हैं ऐसा कह कर श्री सीता पति श्री राम चन्द्र जी आपको गले से लगाते हैं।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥

श्री ब्रह्मा जी, नारद जी, श्री सरस्वती जी, श्री शेष जी तथा सनकादिक मुनि जन भी श्री हनुमान जी आपके के यश का ठीक ठीक वर्णन नहीं कर सकते ।

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते, कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥

जब श्री हनुमान जी की महिमा श्री यमराज कुबेर जी व दस दिक्पाल भी पूर्ण रूप से कह नहीं सकते तो धरा के कवि और विद्वान भला कहाँ से कह पायेंगे ।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा ॥१६॥

आपने सुग्रीव जी पर बहुत उपकार किया उनको श्री राम जी से मिला कर उन्हें राजपद दिलवाया ।

तुम्हरो मन्त्र विभीषण माना, लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥१७॥

तुम्हारी सम्मति विभीषण ने मान ली थी इसीलिए वह भी लंका के राजा बन गए थे। इस बात को सारा संसार जानता है ।

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥

जो सूर्य सहस्त्रों योजन की दूरी पर है उसे भी आपने (बचपन में) मीठा फल समझ कर मुख में रख लिया था ।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही, जलधि लाँघि गये अचरज नाही ॥१९॥

प्रभु जी की निशानी अंगूठी मुँह में रख कर आपने समुद्र पार कर लिया इसमें हैरानी की बात नहीं है ।

दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०॥

संसार के चाहे जितने भी कठिन काम हों, हे हनुमान जी आपकी कृपा से वह सब के सब सहज ही में हो जाते हैं ।

राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे |२१|

हे श्री हनुमान जी ! श्री राम जी के आप द्वारपाल हैं आपकी आज्ञा के बिना किसी का भी प्रवेश उनके दरबार में नहीं हो सकता ।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रच्छक काहू को डरना । २२ ।

हे श्री हनुमान जी आप की शरण में जो आता है उसे सभी प्रकार का आनन्द मिल जाता है आप जिसके रक्षक हों उसे किसी का डर नहीं रहता

आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक तें काँपै । २३

हे श्री हनुमान जी ! अपने तेज को आप स्वयं ही सभाल सकते हैं। आपकी जोरदार आवाज (हॉक) सुन कर तीनों ही लोक कांपने लगते हैं

भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै ॥ २४ ॥

श्री महावीर जी का नाम पुकारते ही भूत पिशाच भाग जाते हैं पास नहीं फटकते।

नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत वीरा ॥२५॥

श्री महावीर हनुमान जी का सतत नाम जप करने से सभी प्रकार के रोग और पीडायें नष्ट हो जाती हैं ।

संकट तें हनुमान छुड़ावे, मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥२६ |

आपका ध्यान जो मन वचन और कर्म से करते हैं, उनको आप सभी विपत्तियों से उबार लेते हैं ।

सब पर राम तपस्वी राजा, तिन के काज सकल तुम साजा । २७ ।

तपस्वी राजा राम सबसे श्रेष्ठ हैं, उनके भी सब काम आपने ही परिपूर्ण किए हैं ।

और मनोरथ जो कोई लावै, सोई अमित जीवन फल पावै |२८|

जो जो भी कोई मनोकामना लेकर आपके पास आता है, सौ (वह) ही जीवन में मनोवळ्छा फल पा जाता है ।

चारों जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा |२९|

हे श्री हनुमान जी ! सतयुग द्वापर त्रेता तथा कलयुग आदि चारों युगों में आपका प्रताप प्रसिद्ध है ही समस्त जगत में आपका सुयश भी सर्वत्र प्रकाशमान है ।

साधु संत के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे ॥३०।

आप साधु सन्तों के रक्षक हैं तथा असुरों का संहार करने वाले हैं । श्री राम जी के अत्यन्त प्रिय हैं ।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस वर दीन जानकी माता |३१|

सीता माता ने आपको वरदान दिया था कि जिसे भी आप चाहें उसे आप आठों प्रकार की सिद्धियाँ और नौओ प्रकार की निधियाँ प्रदान कर सकते हैं।

राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥

राम नाम की रसायन तुम्हारे पास है तुम सदा ही रघुनाथ जी की सेवा के लिए तत्पर रहते हो ।

तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै ।३३।

तुम्हारा भजन करने से श्री राम जी सहज में प्राप्त हो जाते हैं और जन्म जन्मान्तर के दुःख सदा के लिए नष्ट हो जाते हैं ।

अंत काल रघुवर पुर जाई, जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई |३४|

मृत्यु के पश्चात् वह भक्त श्री राम जी के (साकेत) धाम में चला जाता है।

यदि जन्म प्राप्त करे तो वह हरि की भक्ति प्राप्त कर लेता है।

और देवता चित्त न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई |३५|

हनुमान जी की भक्ति करने से वे सब सुख प्राप्त हो जाते हैं, दूसरे देवता जिनके बारे में सोच भी नहीं सकते ।

संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा |३६ |

जो श्री हनुमान जी के महावीर रूप का स्मरण करते हैं उन के सभी कष्ट और पीडायें समाप्त हो जाती हैं ।

जै जै जै हनुमान गोसाई, कृपा करहु गुरू देव की नाई |३७ |

हे श्री हनुमान जी ! आपकी जय हो जय हो जय हो! आप मुझ पर कृपालु गुरू की तरह कृपा करें ।

जो सत बार पाठ कर कोई, छुटहि बंदि महासुख होई |३८|

जो कोई इस हनुमान चालीसा का शत बार (सौ बार) नित्य प्रति पाठ करेगा उसके सब बन्धन छूट जायेंगे और वह परमानन्द की प्राप्ति कर लेगा ।

जो यह पढ़े हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा ।३९ ।

जो भक्त इस श्री हनुमान चालीसा का नियम पूर्वक पाठ करेगा उसको निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी इसके साक्षी साक्षात् शंकर जी हैं

तुलसी दास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय महँ डेरा |४०|

श्री तुलसी दास जी कहते हैं, हे श्री हनुमान जी ! मैं तो सदैव आपका सेवक हूँ। अत: हे नाथ मेरे हृदय में निवास करें ।

दोहा

पवन तनय संकट हरण, मंगल मूरति रूप । राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ।।

हे पवन कुमार आप संकटों को हरने वाले तथा मँगल मूर्ति हैं आप श्री राम जी लक्षमण जी तथा श्री सीता जी सहित हमारे हृदय में निवास करें ।

भृगु स्तोत्र अर्थ सहित

महर्षि भृगु ब्रह्मा जी के मानसपुत्र दैत्य गुरु शुक्राचार्य के यशस्वी पिता त्रिकालदर्शी लोक सन्तापहारी “महर्षीणां भृगुरहम” इस गीता वचन के अनुसार भगवान की दिव्य विभूति हैं, यह स्तोत्र भक्तों के प्रति उनकी कृपा प्राप्ति में परम सहायक सिद्ध होगा ।

(१) आदि देव ! नमस्तुभ्यं प्रसीदमे श्रेयस्कर || पुरुषाय नमस्तुभ्यं शुभ्रकेशाय ते नमः ||१||

अर्थ :- ब्रह्मा जी के मानस पुत्र मरिच्यादि नौ ब्रह्म सृष्टि के आदि देव हैं, उन्हीं में भृगु जी भी एक हैं, अतः हे आदि देव भृगु जी ! में आपका भक्त आपको नमस्कार करता हूं। हे सभी का कल्याण करने वाले भृगुदेव ! मेरे कल्याण के लिए मुझे आपकी प्रसन्नता प्राप्त हो । आप सभी के अन्तर्यामी परम पुरुष हो, अतः आपको मेरा नमस्कार है । हे शुभ्रकेश (श्वेतकेश धारी) आपको मेरा फिर नमस्कार है ।

(२) तत्त्व रथमारूढं ब्रह्म पुत्रं तपोनिधिम् । दीर्घकूर्चं विशालाक्षं तं भृगुं प्रणमाम्यहम् ||२||

अर्थ :- आत्म तत्त्व रूपी रथ पर विराजमान ! ब्रह्मा के मानसपुत्र ! तपस्या

के परिपूर्ण मानस भण्डार लम्बी दाढ़ी सुशोभित ! कमल के समान विशाल

नेत्रों वाले हे भृगु जी मैं आपको सादर प्रणाम करता हूं ||२||

(३) योगिध्येयं योगारूढं सर्वलोकपितामहम् । त्रितापपाप हन्तारं तं भृगुं प्रणमाम्यहम् ।।३।।

अर्थ : योगियों द्वारा ध्यान करने योग्य ! योग में आरूढ यानी परिपूर्णयोगी, समस्त लोकों के पितामह (परम पूजनीय) आध्यात्मिक आधिदैविक दुःखों के तथा समस्त पापों के नाश करने वाले उन परम प्रसिद्ध महर्षि भृगु को मैं सादर प्रणाम करता हूं ||३|| जी

(४) सर्वगुणं महाधीरं ब्रह्मविष्णु महेश्वरम् । सर्वलोक भयहरं तं भृगुं प्रणमाम्यहम् । अर्थ सर्वगुणसम्पन्न महा धैर्यशाली, ब्रह्मा विष्णु महेश्वरस्वरूप अर्थात

इनके तुल्य ऐश्वर्य वाले समस्त प्राणियों के भय को दूर करने वाले उन भृगु को में सादर प्रणाम करता हूं ||४||

(५) तेजः पुञ्ज महाकारं गाम्भीर्ये च महोदधिम् । नारायणं

च लोकेशं तं भृगुं प्रणमाम्यहम् ||५|| अर्थ :- तेज का समूह, बड़े से बड़ा आकार बनाने में समर्थ, गम्भीरता के सागर, नारायण के हृदय में श्री वत्स चिह्न के रूप में निवास करने के कारण

नारायण स्वरूप लोकों के ईश्वर उन भृगु जी को मेरा प्रणाम है ||

(६) रूद्राक्षमालयोपेतं श्वेतवस्त्र विभूषितम् । वर मुद्रा धर शान्तं तं भृगुं प्रणमाम्यहम् ।।

अर्थ :- रूद्राक्ष की माला से सुशोभित, श्वेत वस्त्रों से विभूषित तथा वरमुद्रा

धारण किये हुए परम शान्त उन भृगु जी को में सादर प्रणाम करता हूं

(७) सृष्टि संहार कर्त्तारं जगतां पालने रतम् । महा भय हरं देवं तं भृगुं प्रणमाम्यहम् ।।

अर्थ :- सृष्टि तथा उसका संहार करने में समर्थ, संसार के पालन पोषण में तत्पर, बड़े से बड़े पापों के नाश करने में समर्थ उन भृगु देव को मैं सादर प्रणाम करता हूं ॥

(८) बीजं च सर्व विद्यानां ज्ञानागम्याज्ञ ज्ञानद

भक्तानांभयहर्तारम् तं भृगुं प्रणमाम्यहम् ।।

अर्थ :- समस्त विद्याओं के बीज यानी मूलकारण ज्ञान से अगम्य यानी अच्छे जानकारों के ज्ञान की पकड़ में भी न आने वाले, और अज्ञानियों को ज्ञान का प्रकाश करने वाले अपने भक्तों के भय का विनाश करने वाले उन भृगु जी को में सादर प्रणाम करता हूं |

(९) भक्तेभ्यो भक्तिदात्तारं ज्ञान मोक्ष प्रदायकम् प्राणेश्वरं महानन्दं तं भृगुं प्रणमाम्यहम् ।।

अर्थ -अपने भक्तों के लिए भगवान की भक्ति का दान करने वाले तथा

उन्हें ज्ञान और मुक्ति को भी देने वाले प्राणशक्ति प्रदान करने के कारण प्राणों के स्वामी महान् ब्रह्मानन्द में मग्न उन भृगु जी को मैं सादर प्रणाम करता हूं ॥

(१०) अशेष दोषनाशनं तत्वज्ञानप्रकाशकम् । ज्योतिष्प्रद

स्वरूपस्थं तं भृगु प्रणमाम्यहम् ।।

अर्थ: अपने सेवकों के समस्त दोषों का नाश करने वाले, आत्म तत्व के ज्ञान का प्रकाश करने वाले, ज्योतिष शास्त्र या ज्ञान ज्योति को देने वाले अपने आत्म स्वरूप में स्थित उन भृगु जी को मैं सादर प्रणाम करता हूं ।

(११) हरि प्रियामद हरं भक्त मानस शोधनम् । रूद्रभ्रातरं

शुभदं तं भृगुं प्रण हम् ॥

अर्थ :- नारायण की पत्नी लक्ष्मी के मद का हरण करने वाले अपने भक्तों के मन की शुद्धि करने वाले भगवान रूद्र के भ्राता सभी कल्याणों के दाता उन भृगु जी को में सादर प्रणाम करता हूं |

(१२) सर्व मानस भावज्ञं कल्याणपथ दर्शकम् ॥ सर्वकर्म

विपाकज्ञ तं भृगुं प्रणमाम्यहम् ।।

अर्थ :- सब के मनोभावों को जानने वाले कल्याण प्राप्त करने के मार्ग को

दिखाने वाले सभी प्रकार के तथा सभी प्राणियों के कर्मों के फल दिपाक के रहस्य को जानने वाले उन भृगु जी को मैं सादर प्रणाम करता हूं ।

(१३) भृगुस्तोत्रं पठेन्नित्यं भक्तिमान् धीरमानसः । शुभं सर्वमवाप्नोति कीर्तिमाप्तो न संशयः ॥

अर्थ :- मन में धैर्य या स्थिरता धारण करके भक्ति भाव से इस भृगु स्तोत्र का नित्य पाठ करना चाहिये । जो इस प्रकार करता है वह संसार में कीर्ति को प्राप्त होकर सभी प्रकार के शुभ फलों को प्राप्त करता है इस में कोई संदेह नहीं है |

इति श्री भृगुस्तोत्रं हिन्दीव्यारख्या सहितं सम्पूर्णम् ।।

|| ॐ श्री विष्णु रुपाय श्री महर्षि भृगवे नमो नमः ||

मृत्युंजय मन्त्र – Mirtunjay Mantra

बीज मंत्र

प्रसिद्ध मंत्र

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ।

पूर्ण मंत्र

मंत्र के उपयोग

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मंत्र का इतिहास

श्री बगलामुखी मंत्र – Baglamukhi Mantar

|| स्व सुरक्षा हेतु श्री बगुलामुखि मंत्र ||

अपमृत्युभय, दुर्घटना, रोग, शोक, शत्रुभय और भयंकर कलि और शनि के थपेड़ों से वाण पाने हेतु, कम से कम एक माला तो जरूर पर जरूर जपे। हल्दी की माला श्रेष्ठ केवल चंदन की माला न हो, शेष कोई भी माला लें। सामने ज्योति प्रज्वलित करें, अगरबन्नी लगाएँ, जल रखें और निम्न मंत्र का जप करके सामने रखे जल में फूंक मारे और उसे पी लें।

ॐ ह्लीम् बॅगुलामुखि सर्वदुष्टानाम्

वाचम्- मुखम् पदम्-स्तम्भय जिह्वां कीलय

बुद्धिम् नाशय ह्लीम् ॐ ( स्वाहा )

जप के उपरांत एक माला (रुद्राक्ष की माला पर) श्री त्रिपूर भैरवी माता के निम्न मंत्र का जप भी करें।

ॐ ह्रीं ग्लौम् ग्लौम् हंसौं नमः

महा मृत्युंजय मन्त्र – Maha Mirtunjay Mantra

बीज मंत्र

प्रसिद्ध मंत्र

ॐ हौं जूँ सः । ॐ भूर्भुवः स्वः । ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् । स्व: भुवः भूः ॐ । सः जूँ हौं ॐ ।

पूर्ण मंत्र

मंत्र के उपयोग

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मंत्र का इतिहास

गायत्री मंत्र- Gyatri Mantra

बीज मंत्र

|| ॐ भूर्भुवः स्वः ||

प्रसिद्ध मंत्र

|| ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।।  

पूर्ण मंत्र

मंत्र के उपयोग

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मंत्र का इतिहास

श्री प्रेतराज जी की आरती

जय प्रेतराज राजा, जय प्रेतराज राजा। संकट मोचन वीरा, संकट मोचन वीरा। जय जय अधिराजा, जय प्रेतराज राजा।

रूप भयंकर ऐसा, थर स्वामी थर थर थर काल करें। काल करे जिन पिशाच सब काँपे, जिन्न पिशाच सब काँपे

जिनको बेहाल करे, जय प्रेतराज राजा।

हाथ में चक्र तिहारे, मुकुट निराला है। स्वामी मुकुट निराला है सुयश तुम्हारा निर्मल, सुयश तुम्हारा निर्मल

गल मोतिन माला है, जय प्रेतराज राजा। लीला बखानूँ कैसे, महिमा निराली है। तिहारी

महिमा निराली अज्ञान अन्धेरा मिटा, अज्ञान अन्धेरा मिटा। करते उजियाली है, जय प्रेतराज राजा।

चित्त चरणों में लगा कर तिहारा स्नान करें । स्वामी तिहारा स्नान करें । पूजा फूल चढ़ावे, पूजा फूल चढ़ावे । आरती ध्यान करें, जय प्रेतराज इच्छा स्वामी करते, संकट पूरी करते संकट हर हर राजा । लेते । लेते । दुःख दारिद मिटाते, दुःख दारिद मिटाते सुख सम्पति देते, जय प्रेतराज राजा ।

श्री भैरव जी की आरती

आरती करो, भैरव की करो, भैरव की, काल भैरव की, आरती करो भैरव की।

सिर पर जिनके मुकुट विराजे, काँधे मूँज जनेऊ साजे सिर पर जिनके मुकुट विराजे, काँधे मूँज जनेऊ साजे। सदा एक सी लो में रहते, हनुमत की शंकर की। आरती करो, भैरव की करो, भैरव की, काल भैरव की आरती करो भैरव की।

एक हाथ में खड्ग विराजे पाश दूसरे हाथ में साजे। एक हाथ में खड्ग विराजे पाश दूसरे हाथ में साजे। तीजे हाथ कमण्डुल धारे, चौथे मुद्रा वर की। आरती करो, भैरव की करो, भैरव की, काल भैरव की आरती करो भैरव की।

भूत गणों को फाँसी देते, संतो के संकट हर लेते। भूत गणों को फाँसी देते, संतो के संकट हर लेते। कृपा करते भक्त जनों पर लीला हे नटवर की। आरती करो, भैरव की करो, भैरव की, काल भैरव की,

आरती करो भैरव की।

महिमा तुम्हारी कौन बखाने, जग का बच्चा बच्चा जाने महिमा तुम्हारी कौन बखाने, जग का बच्चा बच्चा जाने। रमते भैरों सेर में निश दिन, कृपा से शंकर की। आरती करो, भैरवं की करो, भैरव की, काल भैरव की

आरती करो भैरव की।

श्वान सवारी शोभा पायें, खुद भी नाचें सब को नचायें। श्वान सवारी शोभा पार्य, खुद भी नाचें सब को नचायें। सारे कारज हो दुनियाँ के, लीला से भैरव की। आरती करो, भैरव की करो, भैरव की, काल भैरव की, आरती करो भैरव की

शिव चालीसा

दोहा

अज अनादि अविगत अलख, अकल अतुल अविकार । वन्दौ शिव पद युग कमल, अमल अतीव उदार ॥ आर्तिहरण सुख करण शुभ, भक्ति मुक्ति दातार । करौ अनुग्रह दीनलखि, अपनों विरद विचार || पर्यापतित भव कूप महँ, सहज नरक आगार । सहज सुहृद पावन पतित, सहजहि लेहु उबार ।।

पलक पलक आशा भरयो, रह्यो सुबाट हरो तुरन्त स्वभाव वश, नेक न करो अवार।। चौपाई निहार।

जय शिव शंकर औढरदानी, जय गिरि तनया मातुभवानी। सर्वोत्तम योगी योगेश्वर, सर्वलोक ईश्वर परमेश्वर ॥ सब उर प्रेरक सर्व नियन्ता, उपद्रष्टा भर्ता अनुमन्ता। पराशक्ति पति अखिल विश्वपति, परब्रह्म परधाम परमगति ॥

सर्वांतीत अनन्य सर्वगत, निजस्वरूप महिमा में स्थितरत। अंग भूति भूषित श्मशानचर, भुंजग भूषण चन्द्रमुकुटधर । वृषवाहन नन्दीगण नायक, अखिल विश्व के भाग्य विधायक। व्याघ्रचर्म परिधान मनोहर, रीछ चर्म ओढ़े गिरिजावर ||

कर त्रिशूल डमरूवर राजत, अभय वरद मुद्रा शुभसाजत । तनु कर्पूर गौर उज्जवलतम, पिंगल जटाजूट सिरउत्तम ॥ भाल त्रिपुण्ड्र मुण्डमालाधर, गलरुद्राक्षमाला शोभाकर। विधि हरि रुद्र त्रिविध वपुधारी, बने सृजन पालन लयकारी ॥

तुम हो नित्य दया के सागर, आशुतोष आनन्द उजागर । अति दयालु भोले भण्डारी, अग जग सब के मंगलकारी सती पार्वती के प्राणेश्वर, स्कन्द गणेश जनक शिव सुखकर हरिहर एक रूप गुणशीला, करत स्वामी सेवक की लीला ||

रहते दोउ पूजत पूजवावत, पूजा पद्धति सबन्हि सिखावत । मारुति बन हरि सेवा कीन्ही, रामेश्वर बन सेवा लीन्ही ॥ जगहित घोर हलाहल पीकर, बने सदाशिव नीलकण्ठ बर । असुरासुर शुचि वरद शुभंकर, असुर निहन्ता प्रभुप्रलयंकर ।।

‘नमः शिवाय’ मन्त्र पञ्चाक्षर, जपत मिटत सब कलेश भयंकर । जो नर नारि रटत शिव शिव नित, तिनको शिव अति करत परमहित ।। श्रीकृष्ण तप कीन्हो भारी, है प्रसन्न वर दियो पुरारी । अर्जुन संग लड़े किरात बन, दियो पाशुपात अस्त्र मुदित मन ।।

भक्तन के सब कष्ट निवारे, दे निज भक्ति सबन्हि उद्धारे । शंखचूड जालन्धर मारे, दैत्य असंख्य प्राण हर तारे ।। अन्धक को गणपति पद दीन्हो, शुक्र शुक्रपथ बाहर कीन्हों । तेही सजीवनि बिद्या दीन्हीं, बाणासुर गणपति गति कीन्ही ।।

अष्टमूर्ति पंचानन चिन्मय, द्वादश ज्योति लिंगज्योतिर्मय । भुवन चर्तुदश व्यापक रुपा, अकथ अचिन्त्य असीम अनूपा ।। काशी मरत जन्तु अवलोकी, देत मुक्ति पद करत अशोकी । भक्त भागीरथ की रुचि राखी, जटा बसी गंगा सुर साखी |

रूरू अगस्त्य उपमन्यु ज्ञानी, ऋषि दधीचि आदिक विज्ञानी । शिव रहस्य शिव ज्ञान प्रचारक, शिवहिं परम प्रिय लोकोद्धारक ॥ इनके शुभ सुमिरन तें शंकर, देत मुदित है अति दुर्लभ वर । अति उदार करुणा वरूणालय, हरण दैन्य द्रारिद्रय दुख भय ॥

तुम्हरो भजन परम हितकारी, विप्र शुद्र सब ही अधिकारी। • बालक वृद्ध नारि नर ध्यावहिं, ते अलभ्य शिवपद को पावहिं। 11 भेद शून्य तुम सबके स्वामी, सहज सुहद सेवक अनुगामी । जो जन शरण तुम्हारी आवत, सकल दुरित तत्काल नशावत ।।

दोहा

वहन करो तुम शीलवश, निज जन को सब भार गनौ न अघ अघ जाति कछु, सब विधि करौ संभार ॥ तुम्हरो शील स्वभाव लखि, जो न शरण तव होय। तेहि सम कुटिल कुबुद्धि जन, नहिं कुभाग्य जन कोय दीन हीन अति मलिन मति, मैं अघ ओघ अपार । कृपा अनल प्रकटौ तुरत, करौ पाप सब छार॥ कृपा सुधा बरसाय पुनि, शीतल करौ पवित्र । राखौ पद कमलनि सदा, कुपात्र के मित्र ॥

श्री प्रेतराज जी चालीसा

दोहा

श्री भृगु कमल पद ध्यान धर, श्री हनुमत चरण चित्तलाय। श्री प्रेत चालीसा कहूँ, देवी-देव मनाये ॥

चौपाई

जय श्री प्रेतराज सुखसागर, करूणामय दया के सागर। प्रबल वीर भव कष्ट हारी, जय श्री प्रेतराज सुखकारी ॥ शीश मुकुट सुहावन सोहे, रूप तेरा जग पावन मोहे। गल मणिमाल मनोहर साजे, तेज लखि सूरज भी लाजे ॥

हाथ चक्र अति विकट कराला, धारण किए धनुष और भाला। रत्न जटित सिंहासन सोहे, छत्र चंवर सब के मन मोहे || सुर नर मुनि जन सब यश गावें राम दूत के दूत हाथी की असुवारी करते भक्त जनों का संकट हरते।

दूतों की सेना अतिभारी, साथ चले सब देते तारी। जो हनुमान जी की सेवा करते, दुःख संकट उनका हर लेते। भूत पिशाच चित्र बैताला, सबको है बन्धन में डाला। जय हनुमान के सेवक नामी, मनोकामना पूरक स्वामी

भौतिक जग की सारी पीड़ा, हरते करते करते क्रीड़ा। कठिन काज हैं जग के जेते, तव प्रताप पूरण हो तेते ॥ भूतपति अति विकट कराला, संकट हरण जय दीन दयाला श्रद्धा भक्ति से सिमरन करते, उनके सभी कष्ट तुम हरते ।।

तन मन धन समर्पित जो करते, कठिनाई सब उनकी हरते। तेरे सिवा कौन प्रभु मेरा, केवल एक आसरा तेरा ॥ अरज लिए खड़ा दरबार, प्रभु करो मेरा उद्धार श्वेत ध्वजा उड़ रही गगन में, नाँचू देख मगन हो मन में ॥

मेरों सेर गाँव प्रभु नौका ठिकाना बना अब वहाँ बली का। प्रातः काल स्नान करावे, तेल और सिन्दूर लगाये || श्वेत पुष्प माला पहिनावे, इत्र और चन्दन छिड़कावे । ज्योति जला आरती उतारे, जयति जय श्री प्रेत पुकारे ||

उनके कष्ट हरे बलवान, जयति जय श्री प्रेत महान महिमा सब जाने प्रभु तेरी, कष्ट हरें करें न देरी ।। इच्छा पूर्ण करते जन को, राजा हो या रंक सभी की। तप तेज आपका अपार, जिसको जाने सब संसार ।

दुष्टजनों को देते दण्ड, तोड़ते उनके सब पाखण्ड। चरणों में जो अरजी लगावे, सकल कष्ट उसके मिट जावे ।। आपके दूत बड़े बलवान, पकड़े नित्य नए शैतान। • गुस्सा प्रेतराज जब खावें, उत्पाती सब पकड़े जावें ।।

पलटन है बलवान तुम्हारी, जिससे काँपे भूमि सारी। धर्म की तुम राह चलाते, जिन और भूतों को भगाते ॥ भक्त कष्ट हर शत्रुहन्ता, जय जय प्रेत राज बलवन्ता। जयति जय श्री प्रेत बलधामा, भक्त कष्ट हर पूर्ण कामा॥

भक्त शिरोमणि वीर प्रचंडा, दुष्ट दलन करते निज दण्डा। जयति जय श्री प्रेत बलवाना, महिमा अमित तेरी बलधामा ॥ जो यह पढ़े श्री प्रेत चालीसा, दुख न रहे ताको लव लेसा।। कहे यह दास ध्यान धर तेरा, नित ही मन में करो बसेरा ॥

दोहा

अरि दलन जग पाप हर, मंगल करुणावान। जयति जय भक्त रक्षक, प्रबल प्रेतराज बलवान ।।

श्री भैरव जी चालीसा

दोहा

पहले सुमिर गणेश, को फिर बाला जी ध्यान। भैरव चालीसा कहू, कृपा करे बलवान ||

चौपाई

जयति जय भैरव बाबा, तेजवान गुणधारी। काली के लाला हो तुम, जय जय जय बलधारी 11 घोर अघोर नाम तुम्हारे, अश्वनाथ कहलाओ। कहीं भैरव कहीं बटुक कहाते, कहीं काल बन जाओ ॥

उज्जैन में महाकाल बन, मदिरा पीते जाते हो कहीं भैरव भीषण हो, भीम कपाल हो जाते हो क्रोधी तेजवन्त, भुजंगी हाली हो दया सदा भक्तों पर करते, दीनन के प्रतिपाली हो ॥

पिशाचों के प्यारे हो तुम, जन के संकट हरते हो। क्षेत्रपाल बन तुम्हीं निशि दिन, गाँव की रक्षा करते हो । शंकर के अवतार तुम्हीं हो, हा हाकार मचाते हो। भक्तों की रक्षा करते और उड़द का भोग लगाते हो

एक हाथ में खड़ग तिहारे, दूजे कर कमण्डुल धारे। तीजे कर में पारा विराजे, चौथे वर मुद्रा हे साजे || श्याम श्वान सवारी करते, दीनों के सब संकट हरते।। श्याम रूप सदा जय तेरी, निशिदिन तेरा सुमिरन करते ॥

रविवार जो पूजा करता और स्नान कराता है। धूप दीप नेवैद्य चढ़ाता, संकट से छुट जाता है ।। जय जय जय भैरव बाबा, तुम ही बनो सहाई । त्रितापों को तुम ही मिटाओ, तुम्हीं से लौ है लगाई ||

भूतनाथ के सेवक हो, तुम प्रेतराज के प्यारे । भूतों को तुम फाँसी देते, चाहे कितना ही चिक्कारे । भालचन्द्र तिलक तुम धारी, हो शंकर के प्यारे महाकाल के काल तुम्हीं, हो जीवन के रखवारे ।।

रवान सवारी पर चढ़ कर, प्रभु हा हाकार मचाओ। श्री प्रेत के साथ रमो, श्मशान में धूम मचाओ ॥ महारुद्र के अवतार तुम्ही हो, भक्तों के करतार तुम्हीं हो सृजन करते पालन करते और करते संहार तुम्हीं हो ॥

जो जन तुम्हारा सुयश गाता, सभी कष्ट मिट जाता है। जो मिश्री का भोग लगाता, वह प्रसन्नता पाता है । रूप तुम्हारा अजब अनोखा, दुष्ट जनों को देते धोखा । भक्त जनों के काम बनाते, खाते नहीं कहीं हो धोखा ।।

काली के लाला तुम प्यारे सुन्दर सुन्दर नैन तुम्हारे । बाला जी के सेवक हो तुम, संकट काटो सभी हमारे ॥ नमो नमामि काशी वासी, तुम्हीं से सुख है मिलता। नमो नमामि हे भयहारी, तुम्हीं से ज्ञान है मिलता ॥

सभी आडम्बर दूर करो, हे पाखण्डों के नाशी। सभी दुष्टों का नाश करो, हे काशी के वासी। जय जय भैरव वर दो हमको, वरदायक करतार तुम्हीं। नमो नमामि भैरव बाबा, हम सेवक भरतार तुम्हीं ॥

दोहा

भैरव बाबा दुःख हरण, संकट नाश करन जय जय तुम्हारी जय हो, रहूँ तुम्हीं में मगन

श्री भैरव जी प्रार्थना

सुनो जी भैरव वीर, हे रणधीर, यह विनती करूँ। भिक्षा मुझे यह चाहिए, मैं द्वार नित आया करूँ ।

अरजी मेरी सरकार, करूणागार, तुम सुन लीजिए। न भक्ति है, न ज्ञान है, बस मदद थोड़ी कीजिये महिमा तुम्हारी बहुत है कैसे मैं वर्णन करूँ। सुनो जी भैरव वीर, हे रणधीर, यह विनती करूँ। भिक्षा मुझे यह चाहिए, मैं द्वार नित आया करूँ

शोभा बढ़ाए धाम की, सब ओर जय जय कार है। भूत प्रेत व जिन्नादि सब पे तेरा राज है। हथियार हैं जो आपके, उनका क्या वर्णन करूँ । सुनो जी भैरव वीर, हे रणधीर, यह विनती करूँ । भिक्षा मुझे यह चाहिए, मैं द्वार नित आया करूँ

एक हाथ में खड़ग, दूजे, पारा धारे हो सदा । तीजे कमण्डुल हैं उठाया, चौथे वर मुद्रा सदा । तुम गुणों से दूर हो तारीफ फिर मैं क्या करूँ 1 सुनो जी भैरव वीर, हे रणधीर, यह विनती करूँ । भिक्षा मुझे यह चाहिए, मैं द्वार नित आया करूँ।

बहुत है महिमा तुम्हारी भैरों सेर अब धाम है। आते दुखी पीड़ित जहाँ जग में ऊँचा नाम है। श्री भैरव सरकार के में शीश चरणों में धरूँ । सुनो जी भैरव वीर, हे रणधीर, यह विनती करूँ भिक्षा मुझे यह चाहिए, मैं द्वार नित आया करूँ।

नित नये तुम खेल खेलो माता जी खुश होती रहें। सिर पर मेरे अब हाथ रख दो मन बहुत व्याकुल रहे। हाथ जोड़ कर विनती करूँ और शीश चरणों में धरूँ। सुनो जी भैरव वीर, हे रणधीर, यह विनती करूँ । भिक्षा मुझे यह चाहिए, मैं द्वार नित आया करूँ ।

श्री प्रेतराज जी प्रार्थना

जय प्रेतराज धिराज राजा कृपा इतनी कीजिये हम द्वार तुम्हारे आ पड़े, हे नाथ शरण में लीजिये। सुनलो विनय सरकार, करूणागार, भगवन् दुःख हरी। संकट सताते नित प्रभु, ह नाथ, अब संकट हरी। जय प्रेतराज धिराज राजा कृपा इतनी कीजिये। हम द्वार तुम्हारे आ पड़े, हे नाथ शरण में लीजिये।

सिर पर सुहाना मुकुट, गल धारे मणिमाल है। रूप लुभावन जगत मोहक, काटत संकट जाल है। जब काल बन, विकराल बन दुष्टों पे फेंकत जाल है। तब जिन्नादि कैद होते होते सब बेहाल हैं। – जय प्रेतराज धिराज राजा कृपा इतनी कीजिये हम द्वार तुम्हारे आ पड़े, हे नाथ शरण में लीजिये ।

तुम वीर हो, रणधीर हो, प्रभु सकल सुख के धाम हो । दुष्टों के मारणहार तुम, संकट हरण घनश्याम हो । न बुद्धि है, न ज्ञान है, प्रभु हम हैं अधमाधम निरें । अज्ञान का स्वामी नाश कर दो, चरणों में हैं आ गिरे। जय प्रेतराज धिराज राजा कृपा इतनी कीजिये । हम द्वार तुम्हारे आ पड़े, हे नाथ शरण में लीजिये ।

सुयश स्वामी विश्वव्यापक, श्री भैरों सेर अब धाम है। हम हैं मनोरथ लेकर आये, आप पूर्ण काम हैं। लीला निराली आपकी महिमा तो अपरम्पार है। जो ध्यान तुम्हारा धरते हैं बस उनका बेड़ा पार है। जय प्रेतराज धिराज राजा कृपा इतनी कीजिये हम द्वार तुम्हारे आ पड़े, हे नाथ शरण में लीजिये

जो चित्त चरणों में लगाता और स्नान कराता है। ध्यान धरता दूध चढ़ाता संकट से छुट जाता है। उसकी इच्छा पूरी करते दुःख सभी हर लेते हो । कष्टों से छुटकारा होता सुख व सम्पति देते हो । जय प्रेतराज धिराज राजा कृपा इतनी कीजिये | हम द्वार तुम्हारे आ पड़े, हे नाथ शरण में लीजिये।

पूरी करो इच्छा सभी, हे नाथ करुणागार हो । दरबार में हाजिर तुम्हारे, अब तो बेड़ा पार हो । कब से प्रभु हम हैं पड़े हे नाथ दर्शन दीजिये । द्वारे तुम्हारे हैं खड़े हे नाथ शरण में लीजिये । जय प्रेतराज धिराज राजा कृपा इतनी कीजिये । हम द्वार तुम्हारे आ पड़े, हे नाथ शरण में लीजिये ।

श्री तुलसीदास जी कृत रुद्राष्टकम्

नमामी शमीशान निर्वाणरूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपम्, निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं ॥ 1 ॥

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं, गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं करालं महाकाल कालं कृपालं, गुणागार संसार पारं नतोऽहं ॥ 2 ॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं, स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारूगंगा, लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा ॥ 3 ॥

चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नील कंठं दयालं, मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ 4 ॥

प्रचंड प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानुकोटि प्रकाशं, त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं, भजेऽहंभवानीपतिं भावगम्यं ॥ 5 ॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी, चिदानंद संदोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभोमन्मथारी ॥ 6 ॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भंजतीह लोके परे वा नराणाम्, न तावत्सुखं शान्ति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभोसर्वभूताधिवासं ॥ 7 ॥

न जानामि योगं जपं नैवपूजां, नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं, जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नमामीश शंभो ॥ 8 ॥

श्लोक

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हर तोषये, ये पठन्ति नराभक्म्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ।।

प्रार्थना

ॐ ॐ ॐ
श्री गणेशाय नमः
श्री गुरुवे नमः

गुरू ब्रह्मा गुरु विष्णुः गुरू र्देवो महेश्वरः । गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥

नमस्ते भगवते भृगुदेवाय वेधसे । देव देव नमस्तुते भूत भावन पूर्वजः ॥

यस्यांके च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके भाले बालविधुर्गले च गरलं यस्योरसि व्यालराट ।
सोऽयं भूतिविभूषणः सुरवर: सर्वाधिपः सर्वदा शर्व सर्वगतः शिवः शशिनिभ: श्रीशंकरः पातु माम् ।।

प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्तथा न मम्ले वनवासदुःखतः मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदास्तु सा मंञ्जुलमंगलप्रदा।।

नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम् पाणौ महासायकचारूचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम् ।।

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं, दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् | सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं, रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ।।